यदि श्यामा अपने पैर से अपने दाहिने नेत्र को खुजलाती दिखाई दे तो किसी प्रियजन से मिलन होता है।
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ज्योतिष अंधविश्वास नहीं है, सदियों का विश्वास है, प्रामाणिक विज्ञान और सशक्त शास्त्र है।
मार्गदर्शन करना ही ज्योतिष का उद्देश्य है। ज्योतिषी कोई भगवान नहीं है और न ही किसी का प्रारब्ध बदल सकते हैं। वर्तमान संदर्भ में ज्योतिष शास्त्र की प्रासंगिकता यह है कि ज्योतिषी सही मार्गदर्शन कर सकते हैं। जिससे कि कर्तव्यविमूढ़ व्यक्ति को सही दिशा मिल सके। कुछ लोग स्वनिर्मित वाक चतुरी द्वारा पूर्णतया शास्त्र विरुद्ध आचरण करते हुए, समाज तथा शास्त्र दोनों की क्षति कर रहे हैं।
ज्योतिष शास्त्र समाजोपयोगी एवं अत्यंत प्रसिद्ध शास्त्र है। अप्राकृतिक उपद्रवों के बारे में वराहमिहिर की अवधारणा एकदम स्पष्ट है। महाप्रलय काल में महाकाली ही इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। उनकी आराधना ही एकमात्र उपचार है।
नारद, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, पराशर, गर्गाचार्य, लोमश ऋषि, निबंकाचार्य, पृथुयश, कल्याण वर्मा, लल्लाचार्य, भास्कराचार्य (प्रथम), ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य, मुंजाल यह सिर्फ नाम नहीं है ज्योतिष शास्त्र में इनका अपना गौरवमयी यशस्वी योगदान रहा है। आज इन्हीं के मार्ग दर्शन से हम सब आगे बढ़ रहे है, जब राजनीति विज्ञान हो सकता है, समाज विज्ञान हो सकता है मन का भी मनोविज्ञान हो सकता है तो ज्योतिष विज्ञान क्यों नहीं हो सकता ? हर युग में हर किसी के अपने ज्योतिषी और आचार्य रहे हैं। राजा-महाराजाओं के काल में भी, विदेशों में भी और भारत में भी। रेगन,बुश,क्लिंटन से लेकर हर दौर के मंत्री और राज नेताओं के ज्योतिषी थे और हैं। कौन ऐसा आदमी है जो सितारों के सबंध में राय नहीं लेता, भविष्य में विश्वास नहीं करता। पूरी दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो किसी न किसी रूप में इस विज्ञान को नहीं मानता है। ज्योतिष अंधविश्वास नहीं है। इसके माध्यम से जातक की स्थिति पूर्णंतः रूप से बताई जा सकती है। हस्तरेखा भी एक विज्ञान है लेकिन वास्तव में इसे जानने वाले कम हैं। फर्क इतना है कि ज्योतिष की समझ और उसका अध्ययन कितना है। इसके अनुसार परिणाम निकलता है। हमारे ज्योतिष की बरसों पुरानी परंपरा रही है। शास्त्र सम्मत प्रमाण हमारे पास सुरक्षित है। इसे अंधविश्वास मानने वाले पहले यह साबित करे कि इसका कोई आधार नहीं। पौराणिक और ज्योतिषी तथ्य बताते हैं कि यह ईश्वरीय विद्या है।